लाक डाउन में भी  लाक नहीं होने पाया रंगकर्म .......

लाक डाउन में भी  लाक नहीं होने पाया रंगकर्म ...........     गोरखपुर।कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो....
इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया पूर्वांचल के जाने-माने रंगकर्मी व नाट्य निर्देशक मानवेन्द्र त्रिपाठी ने । लाक डाउन की स्थित में  रंगकर्म भी लाक हो गया था लेकिन  यदि मन जज्बा हो तथा सकारात्मक सोच  हो तो किसी बाधा से पार पाया जा सकता है जिसकी बानगी   सनातनी और आधुनिकता की धागा में आमजन को उत्साहित करने की नीयत से 16रचनाएं डाउनएवं एक शॉर्ट मूवी का निर्माण कर लाक डाउन का पालन करते हुए आम जन को करोना संक्रमण से आम जन को जागरूक कर मिशाल कायम किया ।  रचनाओं में आधार बिंदु करोना संक्रमण से  उबरने के लिय पाश्चात्य संस्कृति से नहीं अपनी परम्पराओं से निजात होने की पुष्टि करने का प्रयास करते दिखे।      जहां पूरा देश करोना संक्रमण से जूझ रहा है उससे उबारने के लिए प्रधानमंत्री ने 21 दिनों का लाक डाउन किया है। लाक डाउन की निहितार्थ आम पब्लिक भली-भांति परिचित है।मालूम पड़ रहा था कि इस व्यवस्था में रंगकर्म भी लाक हो जाएगा लेकिन यदि मन जज्बा हो तथा सकारात्मक सोच  हो तो किसी बाधा से पार पाया जा सकता है जिसकी बानगी   सनातनी और आधुनिकता की धागा में आमजन को उत्साहित करने की नीयत से इन  16 रचनाओ में जिन भी कार्य दिवसों पर प्रधानमंत्री द्वारा जनता कर्फ़्यू आह्वान हो या पांच अप्रैल को दिया जलाने को रचनात्मकता की पुट देकर लोगो को जागरूक किया गया।इसके अलवा मुंबई और गोरखपुर के कलाकारों से आधुनिकता का लाभ लेते हुए एक शॉर्ट मूवी करोना संक्रमण से निजात मिलने व परिवार की भूमिका क्या है इसका  निर्माण कर मिशाल पेश कर  चुके ।  रचनाओं व  शॉर्ट मूवी के द्वारा  करोना संक्रमण से  उबरने के लिय पाश्चात्य संस्कृति  नहीं अपनी परम्पराओं को जीवन के हिस्से में समाहित करने पर बल देते हुए दिखे । एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि जिस प्रकार  समस्त स्तंभों ने अपनी भूमिका का  निर्वहन बखूबी कर रहे है   तो रंगकर्मी होने के नाते हम समाज को जागरूक करने के नियत से क्या  सकते हैं ?उसी उधेड़बुन में सनातनी परम्परा और आधुनिकता का तालमेल कर लोगो को इस लाक डाउन के दौरान  जो भी  अवसर रहा चाहे वह शंख बजाने का हो या दीया बाती का हो उसको बातो को कविताओं के माध्यम से आमजन को उसकी मौलिकता से परिचय कराना जरूरी था।प्रधानमंत्री के आह्वान को वैज्ञानिक जो भी तथ्य उसके इतर जो हमारी परम्पराओं में है उसको कविताओं के माध्यम से सनातनी परंपराओं से जोड़ते हुए लिखने का प्रयास किया। लोगों को अपने धर्म के प्रति जागरूक होने का अवसर दिया।  लाक डाउन ने  सनातनी परम्परा को फिर से जीवंत कर दिया  । सनातनी परंपरा में  कविता  के अवशेष उस कालखंड में ऋषि यों द्वारा अपने अनुयायियों के समक्ष शिक्षा  देने की नीयत किया जाता रहा माना जाता रहा । इन कविताओं में अभिनय भी शामिल होता था जिसके प्रमाण स्वतंत्र रूप से लिखे गए नाट्यशास्त्र में मिलते हैं ।मौजूदा परिवेश उन परम्पराओं को आत्मसात करते हुए आधुनिकता का सहज प्रयोग करते हुए समाज को कुंठित होने से बचाया जा सकता है।