सोशल आडिट टीम पर प्रधान की दादागिरी 

सोशल आडिट टीम पर प्रधान की दादागिरी 


सन्त कबीर नगर - कहने को तो सोशल आडिट बैठक मे ग्रामीणो की उपस्थिति उतना ही जरूरी है जितना की सोशल आडिट की नैतिक जिम्मेदारी वाली पारदर्शिता , सहभागिता , जवाबदेही वाली जिम्मेदारी है । लेकिन कही - कही प्रधानो की मनबढ़ई इस सोशल आडिट के प्रमुख उद्देश्य को वैसे ही दबा रहा है जैसे मानवी अधिकार को अंग्रेजो की हुकूमत दबा रही थी । 
उल्लेखनीय है कि विकास खण्ड बघौली के ग्राम पंचायत मकदूमपुर मे सोशल आडिट बैठक के दौरान एक ग्रामीण की बात को प्रधान व उसके अपने लोग न कहने दिये और न ही मौलिक अधिकार समझते हुए सोशल आडिट टीम सुनने की अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझी । ग्रामीण की आवाज को जहां एक तरफ दबाने की पुरजोर कोशिश की गयी वही उसे गाली गलौज एवं मारने की धमकी देते हुए भगा दिया गया । ऐसे मे यह सवाल उठता है कि ग्रामीणो के बीच सोशल आडिट बैठक को अनिवार्य क्यो किया गया जब ग्रामीण अपनी बात कह नही सकता और सोशल आडिट टीम सुन नही सकता एवं ग्राम प्रधान कहने नही देता तो ग्रामीणो के बीच बैठक क्यो की जा रही है ? क्यो पारदर्शिता , सहभागिता और जवाबदेही नीति को बल दिया गया है ?